bilaspur

छत्तीसगढ़ राज्य में हाथियों और आम आदमी की मौतों का जिम्मेदार कौन ???सीपत क्षेत्र में कुछ दिन पहले एक जंगली हाथी के हमले से महिला की मौत हो गई ? Khabar 36 Garh is news bilaspur



वन मंत्री और अधिकारी कब तक नींद में रहेंगे ,जंगलों की कटाई से हाथी अपने प्राकृतिक आवास खो रहे हैं, जिससे वे गांवों और शहरी क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं

         Mohammad Nazir Hossain chief editor bilaspur

ख़बर 36 गढ़ न्यूज़ बिलासपुर 16 दिसंबर 2025: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर वनमण्डल क्षेत्र में हाल ही में एक जंगली हाथी के हमले में एक महिला की मौत हो गई। यह घटना 12 दिसंबर 2025 के आसपास सीपत वन क्षेत्र के बैमा ग्राम पंचायत के खपरीखोल गांव में हुई। पिछले लगभग 20 सालों से हाथी मानव द्वंद से बड़ी तादाद में आम लोग और हाथियों की मौतें हो रही है। लाख कोशिश और जनता के अरबों रूपए फूंकने के बाद भी मौतें रुक नहीं रही है, क्या कारण है , सत्ता में बैठे नेता और उनके मातहत अधिकारी कहां फेल हो गए हैं, आइए समझते हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्य रूप से एशियाई हांथी (elephas maximus indicus) की उप-जाती पाई जाती है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की विशिष्ट प्रजाति है। यह प्रजाति उत्तर और मध्य छत्तीसगढ़ के जंगलों जैसे हसदेव अरण्य, लेमरू हाथी अभ्यारण्य ,रायगढ़ ,जशपुर क्षेत्रों में रहती है।

छत्तीसगढ़ राज्य में हाथियों के लिए विशेष कॉरिडोर और रिजर्व विकसित किए जा रहे हैं ताकि मानव हाथी संघर्ष कम हो सके।

लेमरू हाथी रिजर्व
लेमरू हांथी रिजर्व कोरबा जिले के हसदेव अरण्य वनों में स्थित है, जिसकी शुरुआत 2007 में केंद्र सरकार की मंजूरी से 450 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से हुई। 2019 में छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे 1,995 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित करने का निर्णय लिया, जो उड़ीसा और झारखंड से आने वाले हाथियों के प्रवास को सुरक्षित बनाता है। इस रिजर्व का मुख्य उद्देश्य हाथियों के प्राकृतिक आवागमन मार्गों की रक्षा करना है।

छत्तीसगढ़ राज्य में आधिकारिक रूप से 9 हाथी कॉरिडोर पहचाने गए हैं। ये मुख्य रूप से पूर्व-मध्य क्षेत्र में हैं और हाथियों की आवाजाही को जोड़ते हैं।



मुख्य हाथी कॉरिडोर
* चरमार-जिंगोल
* नागधरा-बरौद
* हाति-कुदमुरा
* छाल-करतला
* कोरोंधा-रुपुंगा
* बालको-एत्मानगर
* बालको–कटघोरा
* खोड़-रिहंद
* घाट पेंडारी-पकनी

मार्गों का विवरण
ये कॉरिडोर जंगलों, नदियों और मानवीय क्षेत्रों से होकर गुजरते हैं, जैसे हसदेव नदी के किनारे कोरबा और रायगढ़ जिलों में। उदाहरण के रूप में, हाति-कुदमुरा और छाल -करतला कॉरिडोर खनन क्षेत्रों के बीच है, जबकि घाट पेंडारी-पकनी सरगुजा और सूरजपुर के जंगलों को जोड़ता है। हाथी मुख्यतः उड़ीसा और झारखंड से प्रवेश करते हैं।

हाथियों के मौतों का कारण
छत्तीसगढ़ में पिछले 15 वर्षों में हाथियों की बड़ी संख्या में मौतें एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का संकेत देती हैं, जिसमें मानव-हाथी संघर्ष मुख्य कारण है। हाथियों की मौतों का प्रमुख कारण विद्युत करंट से electrocution है, जिसमें 75 से अधिक मामले दर्ज हैं, खासकर धर्मजयगढ़, रायगढ़, जशपुर और सूरजपुर जैसे क्षेत्रों में। वन क्षेत्रों का विनाश, अवैध कटाई, खनन गतिविधियां और बुनियादी ढांचे का विकास हाथी गलियारों (corridor) को बाधित कर रहा है, जिससे फसलें नष्ट होने पर किसान बदले की कार्यवाही करते हैं। इसके अलावा विषाक्त भोजन, शिकार और प्राकृतिक कारण भी हाथी के मौतों के लिए ज़िम्मेदार है।

राज्य सरकार की नाकामी
राज्य वन विभाग ने बिजली लाईनों को 6-7 मीटर ऊंचा करने और इंसुलेशन की सिफारिशों पर कभी ध्यान नहीं दिया, जबकि मानसून में हाथी बड़ी तादाद में इससे मारे गए हैं। खनन प्रभावित क्षेत्रों जैसे रायगढ़, सरगुजा में वन कवर घटने से हाथी गांवों में घुस रहे हैं, लेकिन अभी भी प्रभावी drive away तकनीक और चेतावनी प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। मुआवजा वितरण और विवाद से भी किसानों का गुस्सा बढ़ रहा है।

आम आदमी के मौतों का आंकड़ा
पिछले 11 वर्षों (2013-2024) में कुल 595 लोगों की मौत हुई, जिसमें प्रति वर्ष औसतन 54 मौतें दर्ज की गईं हैं। 2019-2024 के 5 वर्षों में 303 लोगों की मौतें हुई हैं, जिसमें 2021-22 में सबसे अधिक 95 मौतें दर्ज की गईं। सरगुजा, रायगढ़, कोरबा जिले सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र है।

हाथी के मौतों का आंकड़ा
तमाम मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि वर्ष 2001 से 2024 तक कुल 221 हाथियों की मौत हुई, जिसमें 33% विद्युत करंट से मारे गए , जिसमें अवैध बिजली तारों और झुकते बिजली लाईनों से मौतें अधिक हो रही है। इसके अलावा प्राकृतिक कारण जैसे बीमारी, उम्रदराज होना और क्षेत्रीय झगड़े तथा मानवीय कारण जैसे जहर देना , शिकार करना और दुर्घटना भी शामिल है।

जंगलों की अवैध कटाई (हसदेव अरण्य जंगल) और हाथी-मानव द्वंद
हसदेव अरण्य जंगल छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में फैला हुआ है। यह क्षेत्र लगभग 1,70, 000 हेक्टेयर में फैला हुआ है और कोयला खनन के कारण विवादों में है, जो हाथी मानव संघर्ष का बहुत बड़ा कारण है। इस कटाई से जैव विविधता (bio-diversity) पूरी तरह से तबाह हो रही है, हसदेव नदी भी बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो रही है, हाथियों सहित भालू, तेंदुआ, हिरण जैसे जीवों का आवास खत्म हो रहा है।

जंगलों की कटाई से हाथी अपने प्राकृतिक आवास खो रहे हैं, जिससे वे गांवों और शहरी क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं, और मानव-हाथी संघर्ष बहुत तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय वानिकी अनुसंधान संस्थान (ICFRE) और वन्यजीव संस्थान (WII) की रिपोर्ट्स के अनुसार, इससे 27 से अधिक हाथी विस्थापित हो चुके हैं, और आने वाले समय में शहरीकरण बढ़ने से समस्या और गंभीर होगी। हसदेव के जंगल कटने से स्थानीय आदिवासियों की आजीविका प्रभावित हो रही है, क्योंकि साल-महुआ जैसे पेड़ कट रहे हैं जो उनकी आर्थिक और सांस्कृतिक धरोहर हैं। सूत्र बताते हैं कि हसदेव अरण्य में पहले ही 137 हेक्टेयर जंगल साफ हो चुके हैं, जहां लाखों की तादाद में पेड़ काटे गए। यह कटाई परसा ईस्ट और कांता बसन (PEKB) कोयला खदान के लिए हो रही है।

भारत में मानव-हाथी संघर्ष (human-elephant conflict) के मामले में वन विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (wild life protection act) के प्रावधानों से तय होती है। इस अधिनियम के तहत हाथी अनुसूची-1 में शामिल है, जो उन्हें पूर्ण संरक्षण प्रदान करता है। हाथी-मानव संघर्ष की स्थिति में तत्काल प्रबंधन और क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से क्षेत्रीय वन अधिकारियों (DFO स्तर) पर होती है।

वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) और मुख्य वन संरक्षक (CCF) राज्य स्तर पर नीतिगत निर्णय, संसाधन आबंटन, और केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित करते हैं।

विभागीय वनमंडलाधिकारी (DFO) जिला स्तर पर समन्वय करते हैं, क्षतिपूर्ति दावों का सत्यापन और वितरण सुनिश्चित करते हैं। DFO मानव-वन्यजीव संघर्ष मैनेजमेंट प्लैनिंग लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

वन रेंजर/रेंज अधिकारी संघर्ष की सूचना मिलते ही सबसे पहले रिस्पॉन्स देते हैं, जैसे हाथी को भगाना, क्षति का आंकलन और हाथी प्रभावितों को सहायता प्रदान करना। रेंजर स्थानीय स्तर पर निगरानी और रोकथाम के लिए जिम्मेदार होते हैं।

वन रक्षक/बीट गार्ड सबसे निचले स्तर पर, दैनिक निगरानी, आग रोकथाम, अवैध गतिविधियों पर तत्काल कारवाई और रिपोर्टिंग करते हैं

भारत में मानव हाथी संघर्ष यदि किसी राज्य में लगातार बढ़ रहा हो और रुक न रहा हो, तो विभागीय मंत्री (जैसे वन एवं पर्यावरण मंत्री या संबंधित राज्य मंत्री) की जिम्मेदारी राज्य सरकार के वन विभाग के माध्यम से तत्काल समन्वय स्थापित करना होता है।

विभागीय मंत्री की job diary
विभागीय मंत्री को सबसे पहले राज्य स्तरीय मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन समिति की बैठक बुलानी चाहिए, जिसमें वन अधिकारी, स्थानीय प्रशासन, ग्राम पंचायत प्रतिनिधि और विशेषज्ञ शामिल हों। इस समिति को हाथी कॉरिडोर की सुरक्षा, जागरूकता अभियान, सोलर फेंसिंग और drive back टीमों की तैनाती जैसे उपायों की निगरानी करनी होती है।

मंत्री के ऊपर कानूनी कार्यवाही के विकल्प
अगर किसी राज्य में लगातार मानव-वन्यजीव संघर्ष से मौतें हो रहीं हैं और यदि इसमें मंत्री की सीधे तौर पर लापरवाही सिद्ध हो रही हो , तो उनके ऊपर भारतीय वन अधिनियम या पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत विभागीय जांच या दंडात्मक कार्यवाही हो सकती है, जिसमें मंत्री को पद से हटाना या मुकदमा शामिल है। केंद्र मंत्रालय की HEC (human elephant conflict) दिशानिर्देश 2023 के अनुसार, मुआवजा वितरण और पूर्वानुमान प्रणाली लागू न करने पर जवाबदेही तय होती है।

छत्तीसगढ़ में मानव हाथी संघर्ष के प्रमुख कारण
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, उड़ीसा और झारखंड से हाथी छत्तीसगढ़ के जंगलों में प्रवेश कर रहे हैं क्योंकि पड़ोसी राज्यों में उनके मूल निवास क्षेत्र लगभग खत्म हो गए हैं। खनन क्षेत्रों के विस्तार से जंगल खंडित हो रहे हैं, जिससे हाथी खेतों और गांवों की ओर भटकते हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई, अवैध कटाई और बुनियादी ढांचे के विकास ने हाथी गलियारों को तबाह कर दिया है।

शहरी/खेतों की ओर आकर्षण
हाथी खेतों की ओर इसलिए आ रहे हैं क्योंकि जंगलों में भोजन और पानी की कमी हो गई है, विशेषकर मानसून के बाद। फसलें जैसे चावल और अन्य अनाज हाथियों को आकर्षित करती हैं, जबकि जल स्रोतों का सूखना उन्हें बस्तियों तक ले जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर जैसे जिलों में यह समस्या बहुत गंभीर स्थिति में है।

Khabar 36 Garh news के साथ बने रहिये….

Back to top button
error: Content is protected !!