1 अगस्त ओरल हाइजीन डे (मौखिक स्वच्छता दिवस के उपलक्ष्य डॉ. नवाज के द्वारा दांतों एवं मौखिक स्वास्थ्य से जुड़े सुझाव

डेंटल ब्रेसेस से पाएं ओरल हाइजीन में सुधार व सुंदर एवं बेहतर मुस्कान : डॉ. नवाज

Mohammad Nazir Hossain chief editor Raipur
ख़बर 36 गढ़ न्यूज़ रायपुर:- डॉ.एम.एस. नवाज ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि दांतों का महत्व खाने चबाने के साथ साथ खूबसूरती के लिहाज से भी हमारे जीवन में अहम रोल है दांतों की मिसअलाइनमेंट के कारण चबाने,बोलने चेहरे बदसूरत और सांस लेने में समस्या हो सकती है,और यह आपके स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है।साथ ही मसूड़ों की बीमारी और दांतों की सड़न (कैविटी) को भी बढ़ा सकते हैं।टेढ़े मेढे दांत का होना मौखिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है मौखिक स्वास्थ्य में बाधाएं बनती है दांतों की संरचना खराब होने के कारण सफाई अच्छे से नहीं हो पाती है कितना भी ब्रश दांतों पर घुमाएं कितना भी ब्रश करलें पर भोजन के कण दांतों में फंसे रह जाते है जो जीवाणु पनपने में सहायता करती है जो हमारे दांतों एवं शरीर के लिए हानिकारक होती है!जिनके दांत आड़े तिरछे, टेढ़े मेंढ़े ऊबड़ खाबड़ दांतों की स्थिति ठीक नहीं है दांत बराबर नहीं है उसको सही करने के लिए डेंटल ब्रेसेस यानी
ऑर्थोडोंटिक इलाज का सहारा लेकर इस समस्या को ठीक कर सकते है डॉ.नवाज ने बताया कि अक्सर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में जागरूकता एवं जानकारी के अभाव के कारण डेंटिस्ट के पास जाने में हिचकिचाते हैं और सही समय पर डॉक्टर के पास नहीं जा पाते है खास करके दांत से जुड़ी समस्याओं के लिए जाने से लोग परहेज करते है दांतों के प्रति गंभीरता नहीं दिखाते डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं टेढ़े मेढे दांतों होने के कारण ओरल हाइजीन खराब होती है अच्छी मौखिक स्वच्छता बनाए रखना काफी समस्याओं का सामना करना पर सकता है!दूसरे नजरिया से देखा जाय तो ब्रेसेस का ईलाज कॉस्मेटिक उपचार की श्रेणी में मान सकते है जो आड़े तिरछे दांतों को सीधा करके सुंदर मुस्कान खूबसूरती को बढ़ाते है उन्होंने ने बताया कि जिंदगी में ख्वाहिश पूरी हो या अधूरी लेकिन चेहरे पर एक दिलकस मुस्कान होना बेहद जरूरी है|
क्या होता है डेंटल ब्रेसेस, ऑर्थोडोंटिक ट्रीटमेंट,यह कैसे काम करता है,यह उपचार किस उम्र में करना चाहिए ब्रेसेस कैसे लगाया जाता है किन लोगों को लगवाने चाहिए इलाज के दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए!टेढ़े मेढ़े दांतों की समस्याएं क्यों होती है?
ब्रेसेस एक मेडिकल ट्रिटमेंट है जो दांतों को सीधा करने के काम आता है!कई कारक हैं जो टेढ़े-मेढ़े दांतों का कारण बन सकते हैं,जिसमें प्रमुख कारण आनुवांशिक रूप पर निर्भर करता है परिवार में कोई सदस्य जैसे माता पिता या अन्य कोई को टेढ़े मेढे दांत है तो उनके बच्चे की भी अधिक संभावना होती है उनके जैसा दांत टेढ़े मेढे होने की जबड़े का आकार आधुनिक आहार में नरम खाद्य पदार्थों के उपयोग के कारण हमारे जबड़े छोटे हो जाते है जिसे दांतों को पर्याप्त जगह नहीं मिलती है दांतों के निकलने समय स्पेस, दूध के दांत समय से पहले गिर जाना,जगह अच्छे नहीं मिल पाना,जबड़े की चोट,कुपोषण,दांत निकलवाना,बचपन में खराब आदतें जैसे अंगूठा चूसना , निप्पल चूसना या बचपन में जीभ से दांतों को धक्के देना या सही से नहीं चबाना और कुछ मामलों में दूध के दांत नहीं गिरते है अधिक उम्र तक दूध के दांत रहते है और स्थाई दांत आ जाते है परमानेंट दांतों टेढ़े मेढे हो जाते है जगह नहीं मिल पाती है कारण चाहे जो भी हो,ऑर्थोडोंटिक उपचार आपके दांतों को सीधा कर सकता है,आपकी मौखिक स्वच्छता में सुधार कर सकता है और आपका आत्मविश्वास बढ़ा सकता है।ब्रेसेस लगाने ऑर्थोडोंटिक इलाज का सही उम्र क्या है कितना समय लगता है!
वैसे तो कोई निश्चित उम्र नहीं होती लेकिन ब्रेसेस के लिए सबसे अच्छा उम्र बारह से अठारह साल है इस समय जबड़े और चेहरे की हड्डियां ज्यादा लचीली अधिक मजबूत नहीं होती हैं इस उम्र में वृद्धि एवं विकास हड्डियों की हो रही होती है!इस उपचार के समय की बात की करें तो हर किसी के लिए अलग अलग है औसतन ब्रेसेस उपचार में बारह से चौदह महीने लगते है मिसलिग्न्मेंट यानी चिकित्सा शब्द में बोले तो मैलोक्लुज़न केए गंभीरता पर निर्भर करता है मिसलिग्न्मेंट बहुत अधिक रहा तो दो वर्ष या इससे अधिक भी लग सकते है डेंटल ब्रेसेस के द्वारा कई तरह की दंत समस्याओं को ठीक कर सकते हैं,जैसे टेढ़े-मेढ़े,गैप वाले,मुड़े हुए या भीड़-भाड़ वाले दांत शामिल हैं।कई तरह के ब्रेसेस होते हैं, जिनमें प्रमुख मेटल ब्रेसेस,सिरेमिक ब्रेसेस,सेल्फ-लिगेटिंग और क्लियर एलाइनर प्रमुख है। ब्रेसेस आपकी मुस्कान के स्वास्थ्य,कार्य और रूप-रंग को बेहतर बनाते हैं।
ब्रेसेस लगाना क्यों महत्वपूर्ण है! हमें ऑर्थोडॉनटिक इलाज क्यों करवाना चाहिए!
अच्छी ओरल हाइजीन के लिए
चेहरे की खूबसूरती के लिए
अच्छी स्माइल के लिए टेढ़े मेढे बहुत से लोगों ऐसे होते है जिनके दांतों से चबाने बोलने एवं बात करने में परेशानी,शब्द का सही उच्चारण नही कर पाना सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न होती है
चबाने काटने में असुविधा होती है नाक के बजाय मुंह से सांस लेना परता है आपके चेहरे की बनावट में बदलाव के लिए कुछ लोगों के गालों के अंदरूनी हिस्से या जीभ में बार बार कटता है के कारण,कुछ लोगों को खराब मैलोक्लुज़न जैसे ओवर बाइट, अधिक ओवरजेट,अंडर बाइट, अंडर जेट क्रॉस बाइट,रिवर्स ओवरजेट, रिवर्स ओवर बाइट, ओपेन बाइट इत्यादि होने के कारण दांत अच्छे से नहीं बैठते है मुंह बंद करने के बाद भी ऊपर एवं नीचे के जबड़े नहीं सटते है उपर एवं नीचे के दांतों के बीच खाली जगह,अंतर रहता है जिसके कारण कुछ मामलों में मरीजों के जबड़े एवं सिर दर्द जैसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है ब्रेसेस दांतों को धीरे धीरे सही स्थिति में लाने के लिए एक लोकप्रिय उपचार है टेढ़े मेढे दांत का होना आत्मविश्वास और आत्म सम्मान को भी कम कर सकते है दांतों की बीमारियों की रोक थाम जब व्यक्ति को टेढ़े-मेढ़े दांत किसी भी प्रकार के दांतों के गलत संरेखण जैसी समस्या हो रही हो।इलाज के बाद मुस्कुराहट में सुधार व अधिक प्रभावशाली दिखने लगती है खराब दांतों से भोजन को चबाने में समस्या होती है जिसके कारण व्यक्ति का पाचन भी प्रभावित होता है दांतों की समस्याएं न सिर्फ उसकी व्यक्तित पर प्रभाव डालती हैं बल्कि उसका स्वास्थ्य भी प्रभावित करती है और कई तरह की समस्याओं की चपेट में व्यक्ति आ जाता है अक्सर हम दांतों की समस्याओं को छोटा सा मानकर नजरअंदाज करते है यदि आपको स्माइल आपको परफेक्ट नहीं लगती या कुछ लोग ऐसे होते है उनको लगता है उनके दांत सुंदर नहीं है व आम तौर पर हंसने और मुस्कुराने से हिचकिचाते है लेकिन ये भी सच है कि एक दिलकस मुस्कान पर्सनेलिटी,व्यक्तित्व को चार चांद लगा देती है या और उसे निखार देती है दांतों की चमक और सुंदरता को बढ़ा सकते है उसे आधुनिक दंत चिकित्सक यानी ऑर्थोडोंटिक ट्रीटमेंट से संभव है|
दिल और फेफड़ों के लिए भी घातक साबित हो सकता है टेढ़े मेढ़े दांत का होना टेढ़े मेंढ़े दांत का होना आम बात है हालांकि ऐसे लोगों को मुंह की सफाई पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है जरा सी लापरवाही न सिर्फ मसूड़ों एवं दांतों की समस्याएं ही नही बल्कि दिल और फेफड़ों की गंभीर बीमारियों का भी सबब बन सकती है खराब हाइजिन से मुख्य के द्वारा जीवाणु फेफड़ों और हृदय में भी प्रवेश कर सकते है इससे निमोनिया एवं ब्रोंकाइटिस सहित अन्य संक्रमण होने के साथ दिल की धमनियों में प्लाक जमने का खतरा बढ़ जाता है रक्तप्रवाह के दौरान धमनियों पर अधिक दबाव पड़ता है इनके फटने से व्यक्ति को हार्ट अटैक का शिकार भी हो सकता है!ब्रेसेस कैसे लगाया जाता है एवं कैसे काम करता है!पहले डॉक्टर के द्वारा मरीज के मसूड़ों एवं हड्डियों की स्थिति को देखा जाता है जांच की जाती है फिर स्केलिंग यानी पूरे दांतों की सफाई की जाती है फिर डॉक्टर के द्वारा अन्य प्रक्रिया को पूरा किया जाता है उपचार से पहले जैसे आपके दांतों और मसूड़ों, चेहरे की तस्वीरें लेना,प्लास्टर मॉडल बनाना,बड़ा एक्स रे(ओपीजी) करवाना शामिल है फिर डॉक्टर उपचार की योजना बना कर आगे बढ़ते है ब्रेसेस लगाने समय दांतों की बाहरी सतह जहां ब्रेसेस लगाना है वहां डेंटल इचिंगजेल कुछ सेकंड के लिए लगाया जाता है ताकि वह जगह खुरदुरा हो सके और ब्रेसेस का मुख्य हिस्सा ब्रैकेट अच्छी तरह चिपक सके फिर दांतों को पानी से धो दिया जाता है फिर ब्रेसेस का मुख्य पार्ट ब्रैकेट को कंपोजिट बॉन्ड लगा तैयार किया जाता है फिर दांतों को ड्राई यानी सुखा कर चिक रिट्रेक्टर लगा कर कंपोजिट बॉन्डिंग व डेंटल बॉन्डिंग को लगा कर डेंटल लाइट क्योर से दांतों पे कुछ सेकंड दिखा कर क्वियर किया जाता है फिर ब्रैकेट को एक एक करके चिपकाया जाता है इन सभी ब्रैकेट को एक दूसरे के साथ जोड़ने के लिए आर्च वायर और टाई का इस्तेमाल किया जाता है ये दांतों पे लगातार फोर्स लगाती रहती हैं यानी दांतों को सही पोजीशन में खींचती रहती है मसूड़ों के अंदर दांतों के चारों तरफ पीरियडेंटल लिगामेंट पाय जाते है इसमें मैकेनोरिसेप्टर नाम की कोशिका पाई जाती है जो दांतों पे तार की वजह से लगने वाले फोर्स को सेंस करती रहती है।और ऑस्टियोक्लास्ट कोशिकाएं को सिग्नल भेजती है जो जो फोर्स लगने वाले जगह के आसपास के प्रोटीन और एसिड को डिजॉल्व करके खत्म कर देती है जिसकी वजह से हमारे दांतों की आसपास की जगह खाली होती जाती है और फिर ऑस्टियोब्लास्ट नाम की कोशिकाएं जो हड्डियों को तोड़ने व पूर्ण निर्माण करने का काम करती है इनके पास सिग्नल आता है की हमारे दांतों की आसपास की जगह खाली होती जा रही है या वहां पर जॉ बोन डिजॉल्व हो चुकी है जिसकी वजह से खाली जगह के आसपास ऑस्टियोब्लास्ट मिनरल डिपॉजिट करके न्यू जॉ बोन बनाती हैं और ये प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक ब्रेसेस का फोर्स दांतों पे पड़ता रहता है यानी इन ब्रेसेस की वजह से दांतों पे फोर्स परता रहता है और दांतों की आसपास की जगह खाली होती है और दांत नई जगह बना कर आगे पीछे होते है और जिन जगह पे दांत आगे पीछे हुआ है और न्यू जा बोन (जबड़े की हड्डी)बनती है ब्रेसेस लगाने से दांत कितने भी टेढ़े मेढे क्यों न हो कुछ महीने में लगातार लगने वाले फोर्स से दांत सीधे होने लगते है लेकिन पूरी तरह सही होने के लिए एक से दो साल लगते है इलाज के दौरान महीने में एक बार डॉक्टर मरीज का फॉलोअप रखते है साथ ही हाइजिन का ध्यान रखते हुए टाई में लगने वाले सामग्री को बदलते है किस तरफ कैसे दांतों पे फोर्स लगाना है हर महीने फॉलोअप में डॉक्टर तय करते हैं साथ ही आवश्यकता अनुसार आर्च वायर को भी बदला जाता है कुछ मामलों में अच्छे परिणाम के लिए मरीज के दांत निकलवाना या ऑर्थोडोंटिक सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ती है!डॉक्टर के द्वारा ऑर्थोडोंटिक ट्रीटमेंट को तीन हिस्से में बांटा जाता है शुरू के कुछ महीने पहला चरण में दांतों की लेवलिंग और अलाइनमेंट किया जाता है मिड यानी बीच का समय स्पेस क्लोजिंग किया जाता है अंतिम दिनों में फिनिशिंग और डिटेलिंग की जाती है और जब दांतों बिल्कुल एलाइन होकर दांत एक लाइन में आ जाते है तो ब्रेसेस निकाल दिया जाता है फिर रिटेनर के लगाने के सलाह दी जाती ताकि दांत फिर से मूवमेंट होकर आरे तिरछे न हो!
*ऑर्थोडोंटिक इलाज के दौरान ध्यान रखने योग बातें*
• सही नियुक्ति समय पर अपने डेंटिस्ट के पास जाएं!
• हर भोजन के बाद ऑर्थोडोंटिक टूथ ब्रश से धीरे धीरे दांतों की सफाई करें!
• ब्रेसेस लगाने के दौरान कठोर और चिपचिपा भोजन से परहेज करनी चाहिए!
• फुटबॉल बॉक्सिंग जैसे भारी खेल से बचने चाहिए!
• इलाज के दौरान एवं इलाज के बाद ब्रेसेस निकलने के बाद भी डॉक्टर के बताए अनुसार निर्देश फॉलो करनी चाहिए!
