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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने क्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन, Sipat की जनहित याचिका खारिज की, कहा- व्यक्तिगत स्वार्थ से प्रेरित ? Khabar 36 Garh is news sipat ntpc bilaspur

अदालत ने टिप्पणी की—जनहित याचिका गरीब और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा का औजार है, न कि निजी बदले या व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता का हथियार।

Mohammad Nazir Hossain chief editor sipat ntpc bilaspur

ख़बर 36 गढ़ न्यूज़ बिलासपुर, 22 अगस्त 2025: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने क्षेत्रीय ट्रांसपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन, Sipat द्वारा एनटीपीसी लिमिटेड, Sipat के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज करते हुए इसे दुरुपयोग करार दिया और ₹50,000 का प्रतिकूल लागत (Exemplary Cost) लगाया।

संघ ने अपने अध्यक्ष शत्रुघ्न कुमार लस्कर के माध्यम से याचिका दायर कर एनटीपीसी Sipat से निकलने वाले फ्लाई ऐश से भरे ट्रकों के ओवरलोडिंग पर रोक लगाने तथा प्रदूषण रोकने के लिए सभी ट्रकों को तिरपाल से ढककर भेजने के निर्देश देने की मांग की थी। साथ ही, उसने Sipat–बिलासपुर–बलौदा मार्ग पर मोटरयान अधिनियम के प्रावधानों के कड़ाई से पालन की भी गुहार लगाई थी।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविन्द्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने पाया कि याचिका सद्भावना से प्रेरित नहीं है। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं ट्रांसपोर्टर है और एनटीपीसी के परिवहन ठेकों में उसकी प्रत्यक्ष व्यावसायिक रुचि है। याचिकाकर्ता ने अधिकारियों को पत्र लिखकर “स्थानीय परिवहनकर्ताओं को प्राथमिकता” और “भाड़ा दर तय करने” की मांग भी की थी, जिससे उसका निजी स्वार्थ स्पष्ट होता है।

न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि इसी मुद्दे पर पहले से ही W.P.(PIL) No. 37/2024 लंबित है और अदालत ने उसमें स्वतः संज्ञान (suo motu) ले रखा है। इसके बावजूद, याचिकाकर्ता ने समानांतर याचिका दायर की, जिसे अदालत ने “जनहित नहीं बल्कि व्यक्तिगत व्यापारिक प्रतिस्पर्धा” बताया।

महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने यह भी दर्ज किया कि जुलाई 2025 में याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें उस पर एनटीपीसी से जुड़े गिट्टी परिवहन कार्य में लगे वाहनों को रोकने, चालकों को धमकाने और कानून-व्यवस्था बिगाड़ने के आरोप लगाए गए थे। इस तथ्य को याचिका में छुपाना, अदालत के अनुसार, उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है।

अदालत ने टिप्पणी की— “जनहित याचिका गरीब और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा का औजार है, न कि निजी बदले या व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता का हथियार। ऐसी निरर्थक PIL अदालत के बहुमूल्य समय की बर्बादी करती हैं और इस असाधारण अधिकार क्षेत्र की पवित्रता को आघात पहुंचाती हैं।”

अतः, अदालत ने याचिका को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया और ₹50,000 का लागत गारियाबंद और बलौद स्थित विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियों (SAA) को जमा कराने का आदेश दिया। साथ ही, याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई सुरक्षा राशि भी जब्त कर ली गई।

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